उषा प्रियंवदा
गजाधर बाबू ने कमरे में जमा सामान पर एक नज़र दौड़ाई -- दो बक्से, डोलची, बालटी -- ''यह डिब्बा कैसा है, गनेशी?'' उन्होंने पूछा। गनेशी बिस्तर बाँधता हुआ, कुछ गर्व, कुछ दु:ख, कुछ लज्जा से बोला, ''घरवाली ने साथ को कुछ बेसन के लड्डू रख दिए हैं। कहा, बाबूजी को पसन्द थे, अब कहाँ हम गरीब लोग आपकी कुछ खातिर कर पाएँगे।'' घर जाने की खुशी में भी गजाधर बाबू ने एक विषाद का अनुभव किया जैसे एक परिचित, स्नेह, आदरमय, सहज संसार से उनका नाता टूट रहा था।
''कभी-कभी हम लोगों की भी खबर लेते रहिएगा।'' गनेशी बिस्तर में रस्सी बाँधते हुआ बोला।
''कभी कुछ ज़रूरत हो तो लिखना गनेशी! इस अगहन तक बिटिया की शादी कर दो।''
गनेशी ने अंगोछे के छोर से आँखे पोछी, ''अब आप लोग सहारा न देंगे तो कौन देगा! आप यहाँ रहते तो शादी में कुछ हौसला रहता।''
गजाधर बाबू चलने को तैयार बैठे थे। रेल्वे क्वार्टर का वह कमरा, जिसमें उन्होंने कितने वर्ष बिताए थे, उनका सामान हट जाने से कुरूप और नग्न लग रहा था। आँगन में रोपे पौधे भी जान पहचान के लोग ले गए थे और जगह-जगह मिट्टी बिखरी हुई थी। पर पत्नी, बाल-बच्चों के साथ रहने की कल्पना में यह बिछोह एक दुर्बल लहर की तरह उठ कर विलीन हो गया। Listen Audio Playback click here or
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Saturday 8 September 2012
सभी पूरे एक दिन हिंदी की पूजा करते हैं.?
साल के प्रत्येक 14 सितम्बर को "हिंदी-दिवस" मनाया जाता है... क्यों मनाया जाता है, कहना मुश्किल है... लेकिन मनाया जाता है... शायद इसीलिए मनाया जाता है क्योंकि 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी ही भारत की राजभाषा होगी... इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष "हिन्दी-दिवस" के रूप में मनाया जाता है... स्वतंत्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान की धारा 343(1) में लिखा है: संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी... संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा... और हर सरकारी संस्था अपने लेखन कार्यों में इसका उपयोग करेगी... बस यहीं आकर बात ख़त्म हो जाती है... संविधान में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे दिए जाने के कारण ही हम "हिंदी-दिवस" मनाते आ रहे हैं... और 14 सितम्बर के दिन सरकारी कार्यालयों का आलम तो देखने लायक होता है... हर सरकरी दफ्तर में हिदी से संदर्भित ढेर सारे आयोजन किये जाते हैं... भाषण, निबंध लेखन, परिचर्चा इत्यादि... चलिए कुछ भी हो... एक दिन ही सही लेकिन "बेचारी हिंदी" की लज्जा तो रख ली जाती है... मैं यह नहीं कहना चाहता की "हिंदी-दिवस" महज़ सरकारी दफ्तरों का एक तामझाम है... मैं तो सरकारी कर्मचारियों का ह्रदय से आभारी हूँ... कि वो कम से कम हमारी मातृभाषा की इतनी इज्ज़त तो कर रहे हैं... ये सभी पूरे एक दिन हिंदी की पूजा करते हैं... पूरे एक दिन हिंदी पर ही इनका ध्यान होता है...राष्ट्रभाषा - राजभाषा राष्ट्रभाषा - राजभाषा PDF
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